जब bat ball के जोश में आकर
हम चिल्ला कर मिलते हैं
तब राजनीति के घाघ पशु सब पूँछ हिला कर मिलतें हैं
और
दुनिया भर के सूदखोर
दाओस में जाकर मिलते हैं ...
जब सरकारी बाबु दफ्तर में पिज्जा बर्गर खाते हैं
जब फर्स्ट क्लास और सेकंड क्लास को हम जायज़ ठहराते हैं
और महंगाई हमसे मिलने जब बुल डोजर पे आती है
तब असली मुद्दों पर कोई बात नहीं की जाती है
तब वो झोंके जाते हैं जिन पर रोटी के लाले हैं...
ये बेलगाम घोड़े बस्ती की जानिब किसने मोड़ दिए
ये जोर ज़बर के सब किस्से किस छोर पे जाकर मिलते हैं .
आओ लोहे को थोडा सा और तपा कर मिलते हैं
अपनी सारी कमज़ोरी से बाहर आकर मिलते हैं
हमने मिलकर कई अंधियारे
पत्थर से चमकाए हैं
हम उनके सब मंसूबों को फिर से पानी कर देंगे .
Tuesday 23 February 2010
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