वो रात जो हम पे भारी है
उस रात की ये तैयारी है
दम साध के हम बैठे हैं मगर...
दम साध के बैठे हैं हम भी ।
इक रक्स अभी होते होते
इस वक्त का मतलब बो देगा
ये ज़ोर ज़बर के हर किस्से
इक रोज़ तो मानी खो देंगे
इक रोज़ तो दुनिया बदलेगी
मेरे जीतेजी सब होगा......
मेरी आंखों के आस पास .
ऐसा भी नहीं है के कोई
रफ़्तार अलग सी होती है
जब दौर बदल जाते हैं कहीं
चुटकी इक साथ बजाने पर
ऐसा भी नहीं है चुपके से
हम बुद्ध कहीं पर हो जायें
ऐसा भी नहीं है
सन्नाटा
कुछ और नहीं गहराएगा
ऐसा भी नहीं है बिन बोले
अल्फाज़ कभी खुशबू देंगे
ऐसा भी नहीं चरनेवाले
कुछ बीज कहीं पर बो देंगे ...
इक चीज पे ज़ोर लगाने से
ये सब ढाँचे हिल जायेंगे
कुछ और बढाओ रक्स अभी
कुछ और कुरेदो धरती को
वो रात जो हम पे भारी है
उस रात की ये तैयारी है .
Sunday 15 November 2009
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